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________________ AAAAA जैन-दर्शन १५७ ] जुगुप्सा-जिसके उदय से जुगुप्सा वा ग्लनि हो । स्त्रीवेद-जिसके उदय से स्त्री की पर्याय प्राप्त हो । पुरुषवेद-जिसके उदय से पुरुष को पर्याय प्राप्त हो। नपुंसकवेद-जिसके उदय से नपुंसक हो । ये नौ नो-कषाय कहलाते हैं । इसप्रकार चारित्र मोहनीय के पच्चीस भेद बतलाये । दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनोय के अंट्ठाईस भेद हुए। ___ आयुकर्म-जिसके उदय से यह जीव किसी एक पर्याय में टिका रहे। इस के चार भेद हैं: नरकायु-जिसके उदय से यह जीव नारकियों के शरीर में टिका रहे। तिर्यंचायु-जिसके उदय से यह जीव तिथेच वा पशु पक्षियों के शरीर में टिका रहे। - मनुष्यायु-जिसके उदय से यह जीव मनुष्यों के शरीर में टिका रहे। देवायु-जिसके उदय से यह जोव देवों के शरीर में टिका रहे। नामकर्म जिसके उदय से शरीर आदि की रचना होती हो। इसके तिरानवे भेद हैं:
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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