SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ %2523313 जैन-दर्शन १३७] होती जाती हैं वैसे ही वैसे आगे की लेश्याए होती जाती हैं। इनको इस प्रकार समझना चाहिये। छह प्रादमी आम खाने निकले । कृष्ण लेश्या वा कहता था कि इस वृक्ष को जड से काटलो और आम खालो । नील लेश्या वाला कहता था कि भाई वृक्ष क्यों काटते हो, एक गुच्छा काटलो और आम खालो। कापोत लेश्या वाला कहता था कि अरे भाई-गुच्छा क्यों काटते हो, छोटी छोटी टहनियां काटलो और आम खालो । पीत लेश्या वाला कहता है कि भाई टहनियां भी क्यों काटते हो, कच्चे पके आम तोडलो और पके पके खालो। पद्म लेश्या बोला कहता है कि आई कच्चे आम चयों तोडते हो, पके आम तोडलो और खालो.। शुक्ल लेश्यावाला कहता है कि भाई तोडते ही क्यों हो, जो ग्राम पक जायगा वह अवश्य नीचे आगिरेगा, जो आम पककर अपने आप श्रागिरे बस उसीको खालो । इस प्रकार छहों लेश्याओं के उदाहरण हैं । पारिणामिक भावों के तीन भेद हैं । जीवत्व, भव्यत्ल और अभव्यत्व । जीवत्व भाव सब जीवों में है । जिन जीवों में सम्यग्दर्शन प्रकट होने की, व्यक्त होने को योग्यता होती है ऐसे जीवों के भव्यत्व भाव होते हैं तथा जिन जीवों के कभी भी सम्यग्दर्शन व्यक्त होने की योग्यता नहीं है उनमें अभव्यत्व भाव होता है । जिस प्रकार उबालने से मूंग. गल जाती है परन्तु कोई कोई मूंग:(: कोरडू मूंग.) चाहे जितनी अग्नि जलाने पर भी नहीं गलती इसी प्रकार अनेक जीवों में सम्यग्यर्शन प्रकट होने की योग्यता नहीं होती। यद्यपि कर्मों से ढका हुआ श्यात्माका सम्यग्दर्शनगुए समस्त संसारी जीवों में
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy