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________________ १२= ] जैन-दर्शन और दोनों चतुर्दशी के दिन अर्थात् प्रत्येक महीने के चारों पर्वों के दिन नियम से प्रोपधोपवास करता है अथवा प्रोषधोपवास की शक्ति न हो तो उपवास करता है वह श्रावक चौथी प्रोपधोपवास प्रतिमा को धारण करने वाला कहलाता है । सचित्तत्याग प्रतिमा - ऊपरकी चारों प्रतिमाओं को पूर्ण रूप से पालन करता हुआ जो श्रावक जन्म भर के लिये सचित्त पदार्थ का त्याग कर देता है, जो ताजा वा कच्चा पानी भी काम में नहीं लाता, पानीको गरमकर वा प्रामुक वा श्रचित्त कर ही काम में लाता है तथा इस प्रकार जो एकेन्द्रिय जीवों की भी पूर्ण रूप से दया पालन करता है वह पांचवीं सचित्त त्याग प्रतिमा को धारण करने वाला श्रावक कहलाता है । · रात्रिभुक्कत्याग - प्रतिमा - ऊपर की पांचों प्रतिमाओं को पूर्ण रूप से पालन करता हुआ जो श्रावक रात्रि भोजनका सर्वथा त्याग कर देता है वह रात्रिभुक्त प्रतिमा को धारण करने वाला कहलाता है । यद्यपि वह पहले भी स्वयं रात्रि भोजन कभी नहीं करता था तथापि वह कराने वा अनुमोदना का त्यागी नहीं था । इस प्रतिमा को धरण करने से वह रात्रि भोजन कराने वा उसकी अनुमोदना का भी त्याग कर देता है। इसके सिवाय एक बात यह भी है कि जो श्रावक रात्रि भोजन के त्यागी होते हैं वे दिवा मैथुन ( दिनमें मैथुन करना) के भी त्यागी होते हैं। इस प्रतिमा को धारण करने वाला दिवा मैथुन को भी त्याग कर देता है इसीलिये इस प्रतिमा का नाम दिवा मैथुन त्याग भी है।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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