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________________ - - - - oor --d - जैन-दर्शन ___ १२७] : दर्शनप्रतिमा-जो श्रावक संसार, शरीर और भोगों से विरक्त होकर सम्यग्दर्शन को निर्दोष रीति से पालन करता है, सातों व्यसनोंका त्याग कर देता है और पंच परमेष्ठी के चरण कमलों में अत्यन्त भक्ति रखता है वह दर्शन प्रतिमा को धारण करने वाला "श्रावक कहलाता है । ऐसा श्रावक मूल गुणोंको अतिचार रहित "निदोष पालन करता है, प्रतिदिन भगवान् जिनेन्द्र देवकी पूना '" करता है और सदा काल मोक्षमार्ग में लगा रहता है। __ व्रतप्रतिमा-जो श्रावक दर्शन प्रतिम' को पूर्ण रूपसे पालन करता है और फिर पांचों अणुव्रतों को अतिचार रहित निर्दोष पालन करता है तथा तीन गुणव्रत और चारों शिक्षात्रतों को पालन करता है और माया मिथ्यात्व निदान इन तीनों शल्यों का सर्वथा त्यागकर देता है ऐसा श्रीवक व्रत प्रतिमाको धारण करने वाला '' कहलाता है । इसको व्रती श्रावक कहते हैं। सामायिक -इन दोनों प्रतिमाओं को पूर्ण रूप से पालन करता हुआ जो श्रावक तीनों समय सामायिक करता है, तीनों समय प्रत्येक दिशामें तीन तीन आवर्त और एक एक प्रणाम करता है मन वचन काय तीनों को.शुद्ध रखता है और नियत समय तक ध्यान वा जप में लीन रहता है वह तीसरी सामायिक प्रतिमा- को धारण करने वाला कहलाता है। .. प्रोषधोपवास प्रतिमा-उपरकी तीनों प्रतिमाओं को पूर्ण रूप से पालन करता हुआ जो श्रावक प्रत्येक महीने की दोनों अष्टमी
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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