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________________ - - - - - - - जैन-दर्शन १०३] देव पूजा-भगवान जिनेन्द्र देवको देव कहते हैं। उनकी पूजा करना देव पूजा है। श्रावक का कर्तव्य है कि प्रातःकाल उठ कर वह सामायिक करे। सामायिक का स्वरूप आगे लिखेंगे। सामायिक के अनंतर आवश्यक कार्यों से निवटकर मुखशुद्धि शरीर शुद्धि कर शुद्ध वस्त्र पहनकर सामग्री लेकर जिनालय में जात चाहिये । जिनालय में पैर धोकर हो जाना चाहिये। जाते समय "रणसही णिसही" कहना चाहिये । यह जिनालय में आने के लिये शासन देवकी आज्ञा लेने का मंत्र है। फिर भगवान को प्रदक्षिणा देकर नमस्कार कर स्तुतिकर भगवान की पूजा प्रारंभ करनी चाहिये । सबसे पहले भगवानका पंचामृत अभिषेक करना चाहिये पंचामृत में दूध दही घी गंधोदक जल है। तदनंतर कोण कलश तथा पूर्ण कुंभ से अभिषेक करना चाहिये । उस अभिषेक को नमस्कार कर मस्तक पर धारण करना चाहिये । भगवान के चरणों में चंदन चर्चना चाहिये फिर आह्वानन स्थापन सन्निधिकरण कर पूजा करना चाहिये। अंत में शांतिधारा पाठ पढकर विसर्जन करना चाहिये। फिर तीन प्रदक्षिणा देकर तीनबार नमस्कार करना चाहिये। यथासाध्य स्तुति और जप करना चाहिये । इस प्रकार पूजाका कार्य समाप्त करना चाहिये । यह पूजा अष्टद्रव्य से की जाती है। अद्रव्य में जल झारी से तीनधारा देकर चढाना चाहिये । चन्दन भगवान के चरणों पर लगाना चाहिये, अक्षत के पुज रखने चाहिये, अनेक वर्ण के सुगंधित पुष्प चढाने चाहिये, नैवेद्य चढाना चाहिये, दीपकसे पारती उतारनी चाहिये, धूप
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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