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________________ अध्याय 8क राज-शक्ति का अहिंसा प्रचार में योगदान भगवान् ऋषभ देव से लेकर भगवान् महावीर तक चौबीस तीर्थ करों का जन्म राजव शों में हुआ। प्रत्येक तीर्थकर के काल मे अनेकानेक जैन राजे भी हुए, जिन्होने जैनेद्रीय दीक्षा धारण की परन्तु आधुनिक इतिहास की पहुँच वही तक नही है। यहाँ केवल भगवान् महावीर के समय मे हुए तथा पश्चाद्वर्ती कुछ राजाओं का वर्णन कर देना उपयुक्त प्रतीत होता है जिन्होने अहिंसा-धर्म की प्रभावना में प्रशसनीय योग दान दिया। चेटक तथा अन्य राज-श्रेणी राजा चेटक को भगवान महावीर का प्रथम 'श्रमणोपासक' होने का श्रेय मिला । वह वैशाली के अति प्रभावशाली और वीर राजा थे। वह अट्ठारह देशो के गणराज्य के अध्यक्ष थे। उनके 'अहिसा-प्रेम' का पारावार यह था,-'मै प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं अपनी कन्याओ को उन राजाओ के साथ ब्याहूगा जो 'अहिंसक' विचारो के होगे।" सिंधु सौवीर के "उदयन", अवंती के 'प्रद्योत,' कौशाम्बी के 'शतानीक,' चम्पा के 'दधिवाहन' और मगध के 'श्रोणिक' राजा चेटक के दामाद थे । इन मे से राजा उदयन ने तो भगवान महावीर के निकट जैनेश्वरी दीक्षा भी ग्रहण की थी। मजे की बात यह है कि कट्टर अहिसक प्रवृत्ति के होते हुए भी राजा चेटक ने "नीति की प्रतिष्ठा की" और शरणागत की रक्षा के लिये मगधराज कुणिक (कोणिक) के साथ भीषण सग्राम किया।
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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