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________________ धारा में और दक्षिणी भारत की विचारधारा में सामंजस्य कायम करते हुए कि "भारत एक राष्ट्र है" इसकी एकता की नीव में एक “सशक्त शिलान्यास" रख गये। प्राचार्य स्थूल भद्र प्राचार्य महागिरि प्राचार्य सुहस्ति आचार्य गुण सुन्दर आदि अनेक प्राचार्यो ने जनता मे जैन धर्म की विशेष छाप लगाई । आर्य सहस्ति के शिष्य गुणसु दर ने महाराज अशोक के पुत्र सम्राट सम्प्रति की सहायता से भारत के विभिन्न प्रांतो के अतिरिक्त अफगानिस्तान, यूनान और ईरान प्रादि एशिया के राष्ट्रो में भी जैन धर्म (अहिसा धर्म) का प्रचार किया। सूत्रयुग के प्रतिष्ठापक 'उमास्वाति' व जैन तर्कशास्त्र के व्यवस्थापक तथा प्रतिष्ठापक 'समत भद्र' और सिद्धसेन दिवाकर' के नाम उल्लेखनीय हैं। इन सब से पूर्व प्राचार्य 'कुन्दकुन्द' ने प्राध्यात्मिक ग्रंथो की रचना करके समाज और साहित्य की अश्चर्यजनक सेवा की। अनेक प्राचार्यों और मुनियो ने भगवान महावीर की शिक्षामो से प्रेरित होकर देश के कोने कोने मे हिसा धर्म का प्रचार किया, साहित्य का निर्माण किया और अध-श्रद्धा मे ग्रसित जन समूह को , सन्मार्ग दिखाया। गुजरात नरेश 'कुमारपाल' की अहिसा की दीक्षा, दक्षिण में 'विजयनगर' की राज्यव्यवस्था मे अहिसा की प्रतिष्ठा तथा विहार और मथुरा प्रदेशो मे अहिसक वातावरण उत्पन्न करने मे भी इन प्राचार्यों का सक्रिय योगदान रहा है ।
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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