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________________ ५ प्राचार्य शय्य भव सूरि ६ प्राचार्य नंदिमित्र ७ आचार्य यशोभद्र सरि ८ अस्कार्य अपराजित ६ आचार्य संभूति विजय १० आचार्य गोवर्धन ११ आचार्य भद्रबाहु स्वामी प्राचार्य भद्रबाहु [द्रविड एकता के प्रतीक भगवान महावीर के निर्वाण के ५६ वर्ष पश्चात् प्राचार्य भद्रबाहु को जितना अधिक सम्मान, पदवी तथा श्रद्धांजलि उपस्थित करें तुच्छ प्रतीत होता है। आपने अपने योग-बल से मगध की जनता और सम्राट चद्रगुप्त को भविष्य में होने वाले द्वादश वर्षीय दुर्भिक्ष का सकेत किया। उन्ही के उपदेशों का परिणाम था कि सम्राट चंद्रगुप्त उनके साथ दक्षिण यात्रा में गया और शिष्यत्व स्वीकार करते हुए, उनकी शिक्षाओं को शिरोधार्य करते हुए अपने जीवन का कल्याण किया। यह तथ्य 'श्रवणबेलगोल' की चंद्रगुफा के लेख से सिद्ध होता है । आचार्य भद्रबाहु के साथ १२०० मुनियों का संघ दक्षिण पथ को गया था। वे सारे दक्षिण में फैल गये। उन्होने वहाँ अहिंसा सिद्धान्त का खुलकर प्रचार किया। 'कलभ्र' 'होयसल' 'गग आदि राजवशो के नरेशो तथा जनता ने प्राचार्य भद्रबाहु के मुनियों का भव्य स्वागत किया, उनकी शिक्षामो पर आचरण किया, जिनमदिर बनवाये तथा व्यवस्था व व्यय के लिये ग्राम-दान दिये। अत: महान् श्र तधर आचार्य भद्रबाह आर्यों और द्रविड़ो की एकता का कारण बने । अथवा यू कहिये कि उत्तरी भारत की विचार
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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