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________________ ४२ जब मनुष्य इन दोषो पर विजय प्राप्त कर लेता है तो उसे महात्मा बनने में अधिक बिलम्ब नही लगता। हिंसा :यह सबसे बडा दोष है । यह समस्त पापो का जनक है। मनुष्य की सभ्यता के इतिहास का सबसे बड़ा माप-दण्ड यह है कि यूगयुगान्तर से उसने 'हिसक' से अहिसक बनने में कितनी मजिले तय की है। हिसा 'प्रमाद' मे और अहिसा 'विवेक' में निहित है । मनोभावना ही हिसा-अहिसा की निर्णायक कसौटी है । भाव हिसा की मौजूदगी में होने बाली द्रव्य हिंसा (प्राणहिसा) ही हिंसा कहलाती है। डाक्टर के द्वारा सावधान रहते हुए भी, यदि किसी प्राणी की हिंसा हो जाये तो वह हिसा नही है । डाक्टर को उस हिसा का दोष नही लगेगा क्योकि डाक्टर की मनोभावना हिंसा करने की नही थी। असत्य :-- इसका अर्थ है अयथार्थ, अप्रशस्त । जो वस्तु जैसी है वैसी न कहकर अन्यथा कहना 'अयथार्थ असत्य' है। दूसरे को पीड़ा पहुँचाने के लिये दुर्भावना से निर्धन व्यक्ति को 'कगाल' कहना, चक्ष हीन को चिढाने के लिये 'अधा' कहना, दुर्बल को दु:खी करने के लिए 'मरियल' कहना अथवा हिंसाजनक व हिंसोत्तेजक भाषा का प्रयोग करना यह सब असत्य मे शामिल है, भले ही वह यथार्थ ही क्यो न हो । अदत्तादाद चोरी :बिना पूछे किसी वस्तु को ग्रहण करना या स्वामी की अनुमति के बिना उसपर अधिकार करना, मार्ग मे गिरी पड़ी या किसी की भूली हुई वस्तु को हड़प जाना या उस पर अधिकार कर लेना अदत्ता
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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