SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय भगवान महावीर साधना काल (सम्यक् ज्ञान-दर्शन-तप-प्राचार को सजीव मूर्ति एवं प्राणिमात्र के हितैषी) भारत के प्राचीन इतिहास में ईसवी पूर्व सन् ५६६ की सुखद घटना है जबकि चैत्र शुक्ला योदशी की मध्यरात्रि की बेला थी। विदेहराज (बिहार) मे कुण्डपुर नामक नगर था। उसके उत्तरी भाग में क्षत्रिय कुण्ड ग्राम स्थित था। ज्ञातृवशीय महाराज सिद्धार्थ की रानी त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि से एक अपूर्व बालक ने जन्म लिया। ऋतुराज वसत अपने यौवन की अंगड़ाई ले रहा था। राज्य मे धन. धान्य, सुख-ऐश्वर्य में दिनो-दिन वृद्धि होने लगी थी। अतः नव-जात शिशु का नाम-संस्कार वर्द्ध-मान से किया गया। ___ 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात' । वर्द्धमान, अपने व्यवहार में अत्यंत बुद्धिमान विनयी, सयमी, ज्ञान-वान, धीर, वीर और साहसी सिद्ध हुए । उनके माता पिता भगवान् पार्श्वनाथ के उच्च सिद्धान्तों में आस्था रखते थे । अतः उनका पालन पोषण अहिसा, दया, करुणा और संयमशीलता के वातावरण में हुआ । समस्त राजसी सुख-वैभव उपलब्ध होने पर भी वर्द्धमान अलिप्त थे, अनासक्त थे, सात्विक थे। परिवार का मोहपाश उन्हें बाँध न सका। अपने माता-पिता के स्वर्गारोहण के पश्चात् अपने बड़े भाई नदिवर्द्धन की भावनाओं का आदर करते हुए केवल दो वर्ष के लिये मुनिव्रत ग्रहण न करने का संकल्प ले लिया
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy