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________________ भ० नेमिनाथ को ही अगिरस ऋषि के नाम से वैष्णव धर्म में कहा गया है । मथुरा कर्जन म्युजियम में भ० नेमिनाथ की जो अनुपम मूर्तिया प्राप्त हुयी उन में बीच मे भ० नेमिनाथ जिनके नीचे शख का चिह्न दाये तरफ बलदेव जिनके हल का और बांये तरफ श्रीकृष्ण नारायण की मूर्ति है जिनके नीचे चक्र का चिह्न है । भ० नेमिनाथ ने आध्यात्म विद्या का उपदेश दिया। सौराष्ट्र मे युग-युगान्तर की एकत्रित अहिंसा प्रवृत्ति ने उन्नीसवींबीसवी शताब्दी में महात्मा गांधी को पाया जिसने अहिंसा-चक्र से अग्रेज रूपी दैत्यो का दमन करके भारत को स्वतन्त्र कराया। महात्मा गाधी की अहिंसा-शक्ति का श्रेय उनके सौराष्ट्री पूर्वज भगवान् नेमिनाथ को जायेगा। ३० तेईसवे तीर्थकर पाश्वनाथ पार्श्वनाथ का जन्म बनारस के राजा अश्वसेन और उनकी रानी वामा देवी (वर्मला देवी) से हुआ। बचपन से ही उन्होने हिसामूलक अज्ञान तप का विरोध किया। गंगातट पर 'कमठ' नाम का योगी वडे लक्कड़ो की धूनी रमाये और अंग-भभूत लगाये जनता के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ था। उन्होने कमठ तापस को ललकारा और कहा कि तुम्हारा तप मिथ्या है जिसमें नाग-नागिन का जोडा जल रहा है। जब पार्श्वनाथ ने जलती लकडियो में से नाग-नागिन को जलते हुए दिखाया तो कमठ का अभिमान चूर हुआ। पाव ने जब साधुवृत्ति स्वीकार की और कर्मचूर तप किया तो देवयोनि में जन्मा हा कमठ का वह जीव पुराने वैर-भाव का स्मरण करके अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए मुनि पार्श्वनाथ को बहुत दुःख देने लगा। उस समय नाग और नागिन ने, जो मरकर धरणेन्द्र देव और पद्मावती देवी हुए, पार्श्व मुनि पर पाए उपसर्गों का निवारण किया।
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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