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________________ श्लोक सख्या 204 3500 १५२ बहुमूल्य साहित्य का निर्माण करके मानव समाज को पनिर्वचनीय मेवा की। কম ম নাম কী प्रमिधान चिंतामरिण (स्वोपज्ञ टीका सहित) 10000 अभिधान चिंतामरिण-परिशिष्ट अनेकार्थ कोश 1828 निघण्टुशेष (वनस्पति विषयक) 396 देशीनाममाला (स्वोपज्ञ टीकासहित) इनकी अन्य विषयो मे कुतियासाहित्य अलकार-काव्यानुशासन, स्वोपज्ञ अलंकार पूडामणि पौर विवेक वृत्ति सहित छद-छदोनुशासन छदश्चूड़ामरिणटीका सहित दर्शन -प्रमाणमीमासा (स्वोपजवृत्ति सहित) वेदाश (द्विजवदनचपेटा) इतिहास काव्य-त्रिषष्ठिशलाका पुरुषचरित (महाकाव्य) परिशिष्ट पर्व (स्थविरावलिचरित) योग-योगशास्त्र स्नोपज्ञ टीका सहित स्तुतिस्तोत्र-वीतराग स्तोत्र अन्य योग मन्ययोग व्यवच्छेदद्वात्रिंशका भयोगव्यवच्छेद द्वाविंशका महदेव स्तोत्र
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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