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________________ 3 मलयगिरि सूरि 4. सहज कीर्तिगरण 5 विद्यानंद सूरि 6 जय सिंह सूरी 7 प्रेमलाभ 8 शब्द भूषरण 9 हेमचंद्र सूरि ११६ 4500 शकानुशासन 1700 शकार्णव व्याकरण (स्वोपज्ञ वृत्ति सहित ) अनुपलब्ध विद्यानंद व्याकरण वि. 18वी शती वि. स 1680 नूतन व्याकररण प्रमलाभ व्याकरण ,, 1321 "1440 1283 1770 1245 19 300 शब्द भूरण व्याकरण 5691 सिद्ध हेमचन्द्र शब्दानुशासन,” ܕܐ सिद्धहेमचद्रशब्दानुशासन. - गुर्जरनरेश सिद्धराज जयसिंह की विनती से जैनधर्म कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र सूरि ने सिद्धराज के नाम के साथ अपना नाम जोड़कर “सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन' की रचना की । इस व्याकरण की छोटी बड़ी वृत्तिया और 'उगादि' पाठ, 'गणपाठ' 'घातुपाठ' 'लिंगानुशासन' उन्होने स्वयं लिखे जो कुल 125000 श्लोक प्रमाण है । ग्रंथकर्त्ता ने अपने से पहले के व्याकरणों में रही हुई त्रुटियाँ विशृंखलता, क्लिष्टता, विस्तार, दूरान्वय आदि से रहित निर्दोष और सरल व्याकरण की रचना की । सब प्रकार की टीकाओ और पचांगी से सर्वागपूर्ण व्याकरण ग्रथ श्री हेमचन्द्र सूरि के सिवाय और किसी एक ही ग्रंथकार ने निर्माण किया हो ऐसा समग्र भारतीय साहित्य में देखने में नही आता । इस व्याकरण की रचना इतनी आकर्षक है कि इस पर लगभग 62-63 टीकाए, सक्षिप्त तथा सहायक ग्रंथ एव स्वतन्त्र रचनाए उपलब्ध होती है । प्रथकर्त्ता ने आत्म-विश्वास से कहा :
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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