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________________ ११४ कथा कोष" पादि कई कथाकोष हैं जिनके द्वारा धर्माचरण का शुभ फल और अधर्माचरण का अशुभ फल दिखलाया गया है। । 'चम्पू काव्य' भी जैन साहित्य में बहुत है। सोमदेव का 'यशस्तिलक चम्पू' हरिचन्द्र का 'जीवन्धर चम्पू' और अहंद् दास का 'पुरु देव चम्पू' उत्कृष्ट चम्पू काव्य है। गद्यग्रयो में वादीम सिंह की गचितामणि उल्लेखनीय है । (ii) व्याकरण संस्कृत व्याकरण से ज्ञान मूर्त रूप बनता है। वैयाकरणो ने व्याकरण के विस्तार और दुष्करता का ध्यान दिलाते हुए व्याकरण का अध्ययन करने की प्रेरणा इस प्रकार दी है: व्याकरण शास्त्र का अत नही है । आयु बहुत थोड़ी है और विध्नो से भरपूर है। इसलिए जैसे हम, पानी मिश्रित दूध में से, सिर्फ दूध ही ग्रहण करता है, उसी प्रकार निरर्थक विस्तार को छोड़ कर सार रूप व्याकरण को ग्रहण करना चाहिए। सिद्ध सेन गरिण ने कहा है कि पूर्वो में जो शब्दप्रामृत है, उस में से व्याकरण का उद्भव हुआ है। जैनेन्द्र व्याकरण (पञ्चाध्यायी) जैनाचार्च देवनंदि द्वारा रचित जैनेन्द्र व्याकरण मौलिक व्याकरणो में ऊचा स्थान रखता है। इसमें पाँच अध्याय होने से इसे पंचाध्यायी भी कहते हैं। इसमें प्रकरण, विभाग प्रादि नही हैं। पाणिनि की तरह विधान क्रम को लक्ष्य करके सूत्र रचना की गई है। इस व्याकरण
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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