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________________ - - - - (४३) कूजी देले घड़ी के चलाने को ।। टेक ॥ पांचोंही इन्द्री बनीं पांच सूई ॥ बदी नेकी बातें बतानेको ॥ कुंजी० ॥ १ ॥ | मनका फनर ज्ञान गुणको कमानी। तेरा चेतन है चक्कर फिराने को ।। कुंजी० ॥२॥ सत्य धरम की कूक लगानो। यही काफी है पुरजे हिलाने को ॥ कुंजी० ॥ ३ ॥ कर्मोंकी रज से घड़ी को बचावो । सदा रखना विवेक बचानेको ॥ कुंजी० ॥ ४॥ सम्बरका ढकना लगावो घड़ी पे। निर्जर करो मैल हटाने को ॥ कुंजी० ॥ ५॥ सुमतीकी घंटी घड़ी पे लगी है। ख्वाब गफलत से न्यामत जगाने को ।। कूजी०॥६॥ तर्ज । मुस्लमां होनेको अय किवला में तैय्यार नहीं ॥ (नाटक हकीकृतराय) | वे धरम दुनियामें जीके हमें करना क्या है। लेके अपयश जो मरे यार तो मरना क्या है ।। टेक ॥॥ . काल टाला नहीं टलता है किसी का यारो॥ जब यह तय हो ही चुका फिर तो झगड़ना क्या है । वेधरम० १ नजर आता है नहीं जीव को शरणा कोई ॥ आपको आप शरण औरका शरणा क्या है ।वे धरम० ॥२॥ -
SR No.010208
Book TitleJain Bhajan Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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