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________________ - (४२) - - - - - - तर्ज | जागो जागो जो शाहजादे तुम पर बारलारे ॥ जागो जागो भारत वासी दुःख परिहारनेरे ।। टेक ॥ आलस्य नींद नैनमें बस गई। फूटफांससे सबको कसगई। बनकर नाग अविद्या डसगई ।। सब मतवारनेरे ॥ १ ॥ जो यहां थे क्षत्री रणवीर । होगए निर्वल और अधीर ।। पड़ गई सबके गले जंजीर । हिम्मत हारनेरे ॥ २ ॥ वनगये सब पुरुशारथ हीन । फिरते महा दुखी और दीन । भारत होगया तेरा तीन ।। आलस्य कारनेरे ॥ ३ ॥ ॥ हृदय दया धरम को धार । विरोध अरु क्रोधासुरको मार । न्यामत आलस्य नींद निवार ॥ सब सुखकारनेरे ॥ ४ ॥ .... .......- - - man -e तर्ज | ढोला ! प्रान तो जगाई वैरी नोंद में ॥ अरे हो रे चेतन भूला फिरे है गति चार में ।। टेक ॥ अब नर भव पायो तूने । ला मनपर उपकारमें ॥ अरे० ॥१॥ मल राग न धोया प्राणी। उमर गंवाई दोई चारमें ॥ अरे० ॥२॥ सुन सीख सुगुरु की न्यामत । हितू नहीं कोई संसार में अरे०३ oam n o -ma तर्ज ॥ चरखा लेने कमरके हिलानेको ॥ | कुंजी देले घड़ी के चलाने को। चलाने को शिव जानेको । -ramew mman - - - -
SR No.010208
Book TitleJain Bhajan Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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