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________________ (७७ ) घट माहे, राखो धर्मरी जाबता ॥ चे० ॥ ५ ॥ सत गुरू - नो ए सौख, ए अवसर मति चूकज्यो ॥ चे० ॥ चे. पर निन्दा पर नार, तिरथ नेड़ा मत काज्यो ॥०॥ 1६ ॥ चे० पड़े सगा में सैन्य पड़े संच्यो धन हाथ रो । चे० । चे. बंधव त्रिया पृत, न पले धर्म जगनाथ रो ॥ चे० ॥ ७॥ चे कर ज्यो कछु करतूत, ओ मनुष्य तणो भव पाय में ॥ चे० ॥ चे० मत द्यो नरक ना सूत परनी चुगली खाय ने । चे० ॥ ८॥ चे० आथ न चाले साथ, नारी सम्पत से सही। चे। चे० सई पाछै रह जात छोड जासी निज देह सही । चे० ॥ ८ ॥ च. हाथी हौंडोला ने हाट, पोरा पारसौ सही। चे। चे तोने हुवेलो उचाट पाछै गरज सरे नहौं ।' ॥ १० ॥ चे जब लग खार्थ होय । तब लग सुख जीजी करे । च । चे० स्वार्थ पुगां सीय। मुखदौठा सं लड़ पड़े ॥ च ॥ ११ ॥ ए संसार सरूप । देखी में प्रति बुझज्यो। चे० । काम भोग महा कूप । तिण मांही मत मुरभज्यो । चे॥ १२ ॥ साध पणो ल्यो सार । काम भोग त्यागन करो। चे । श्रावक ना ब्रत बार । शिवरमणि वेगा बरो ॥ चे ॥ १३॥ अधिर आजखो जाण । तन धन जोबन अथिर है। चे। । पालो जिनवर आण पिछतावो न पड़े पछै । चे॥
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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