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________________ 3 f 4 } 3 · दे 1 ( ७६ ) ॥ दोहा ॥ G लोह बागिये जिम कियो, तिम' न करू खाम af सरिसा गुरु मेटिया, सरिया बंछित काम ॥ प्रदेशी प्रति बुझियो, सांभल ए दृष्टान्त । त जुगत करौ बारियो, मिलिया सौ संत स्वामी ये मोटा पुरुष, म्हांरा खोल्या अन्तर नै कृपा कर सुणाय द्यो, तुम मुख हंदा बैरा ॥३॥ मुनिवर दोनो देशना, माटो परषवा मांय । राय प्रदेशी आद दे, सुणे सर्व चितलाय ॥४॥ ॥ दाल १८ - मी ॥ ( विण जारारी देशी ) चेतन चेतो रे मनुष्य तसो भव माय । प्रमाद में मड़ज्यो मतौ । चेतन चेतोरे ॥ १ ॥ चेतन चेतो रे जरा रोग हुवे श्राय, सैंठा रहज्यो शूरा सती ॥ चेतन • ॥ २ ॥ चेतन० बासो वसियो छाय, जीव बटाउ पाहुगो || चे० ॥ २ ॥ चेत. देहरी सूरछा मति, आय, कूड़ी मतकर चाकरौ ॥ चे० ॥ चे० 'छोडी जासी प्राण, ढेरी करसी राखरी ॥ चे० ॥ ४ ॥ चे० रोग न व्याप्यों पाय, पांचु इन्द्रोक सावतां ॥ चे० ॥ चे० ज्यां चेतन
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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