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________________ ( ७३ ) .. में खरो कर जागियो, थांगे धर्म के सार । । पिण मी सुं छुट नहीं, बडा बुढां रो भार ॥५॥ मत घणा दिन भालियो, छोडता यावे लाज। . जिम छ तिमहिज हरण यो, थे मोटा मुनिराज॥६॥ ,, बचन सुम्ही राजा तयो, तब गुरु बोल्या एम। . राना तू पिछतावसी, लोह बाणिया जेम ॥७॥ . खामी कुण्ड लोह. वाणिया, कहो हुवो के जेमः । ; कृपा कर मुग्णाय द्यो, हूं सुग्णस्युं धर. ग्रेम - ढाल १७मी ॥ .. (देशो चोपाई नो) : गुरु बोल्या राय सांभल जेह, प्रश्न इग्यारमा गे उत्तर एह । कोद्रक बाणिया धनरी चाह, भेला हुई घटवौ सांही जाय ॥ १. ॥ जांत जातां घायो उद्यान, आगे भाई लोहरी खान। निरधन रे तो लोहरो ज धन, खान देखी सहु छरष्या मन ॥ २ ॥ जाण्यो दलिद्र गया न टूर, लोहरो भार उमाइयो पूर, सगला अत्यन्त हुवा खुसाल, विण पईसां ए मौलियो माल ॥३॥ मागा चाल्या धनरौ चाय, तस्वो देखो अायो दाय । न्हावद्यो सहु खोह रो भार, सगला तरवा बांधा भार
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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