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________________ ranti ( ७२: १) . आधो पाथो जाण। चौथे भाग में सोलर, जावः बतौस चौष्ट प्रमाण. ॥ प्र॥ १६ ॥ तिग दीवारा कि णा सं दीवो ढांक काय । ता पिणा जोत मांही रहेगा । बारे उजास न होय ॥ ग्र० ॥ १७॥ चासठ बह तेह । मेजौ, बार उजास.न थाय । इण :दृष्टांत जीवड़ीजो राजा रहे है काया मांय ॥ प्र० ॥ १८॥ मोटौ कीया बांधी जीवड़े र तिहां करे घणो उद्योत कर्म धमा काया न्हानड़ी जौ, तिण सुंदब गई जोत॥ प्र ॥ १६ ॥ इण दृष्टांते सरधले जी जूदा जीव नें.. काय ।। एन्दा कर सरधिया पिण मत छोड्यो नहीं जाय । प्र० ॥ २०॥ . . . ॥ दोहाँ ॥ :: प्रश्न पूछ इग्यार मों, मुनि उत्तर दौनो जाब । . 5. लोह बाणियो कधी तव, आई धरम रौ आब ॥ . : राय प्रदेशी गुरु प्रते, बोले जोडी हाथ । । । “पहलो प्रश्न हं पूछियो, म्हारी कही मनोगत बातार.. - मैं जाणीनें पूछिया, आड़ा टेडा बैण। । • ज्ञान तणी प्राप्त भगो; थे मौलिया साचा सैण ॥३॥ . ' दादा पड़ दादा तणो, दर पौड्यां रो-राह ।। । विडा बुढा रो सेवियो, किम छूटःखामी नाह शि m
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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