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________________ ( ६३ ) ॥४॥ गुरु कहे बाय भरी दिवड़ी जी। दोठी छै ते राय। राय कहै दौठी अछैनौ। तो सुण चित लगाय ॥ प्र०॥ ५ ॥ बाय भरौ तोलौ दिवड़ी नौ। तोलौ काठी ने . बाय । घटे के न घटे सही जौ। सुण उत्तर दे मुझ राय ॥ प्र० ॥ ६ ॥ राय कहै बायु काय में जौ। भार नहीं मुनिराय । दूण न्याय तू जास ले जौ। जदा जीव ने काय ॥ प्र० ॥ ७॥ भसंख्या बाउ काय निसरौ जौ। दिवड़ी माहौं घटाय । एकण जीव निकल्यांजौ । राना काय कम घटाय ॥८॥ तिण कारण त सरध ले जौ। जीव काया छै दोय। छोड दे खांच की नहीं जी । तू अन्तर विचारी जोय ॥ प्र० ॥ ६ ॥ राय कहै थारी अकल सुनी । मेलो ए दृष्टान्त । म्हारे तो दिल वैसे नहीं जी। न मिटी मन री भात ॥ म. १०॥ प्रश्न पूछौं आठमों जो हंथांने निरधार । सांची श्रद्धा मांहरी जौ। तो देज्यो अर्थ विचार ॥ यु ॥ ११॥ ॥दोहा॥ बांका प्रम्न आठमो, गुरु ने पूछ राय । मोटे मंडाणे करो, बेठो सभा वशाय ॥१॥ कोटवाल दूक चोरटो, आयौ संप्या मोय । पारखा करवा जोवरी, मैं टू कड़ा कौधा दोय ॥२॥
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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