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________________ ( ६३ ) जोव काया नहीं एक हो प्र० संधी पंथ बताविया तू छोड दे कुड़ी टेक हो प्र० ॥ १७ ॥ राय कहै बुध थारो निरमली । थे तो मेल्या हेत अनेक हो मु० नॅ अचरज हवा | म्हारे तो हि दे बेसे नहीं एक ៖ सुग हो सु० ॥ १८ ॥ ॥ दोहा ॥ प्रश्न पूछे सातमा, गुरु प्रवे राजान | गुरु उत्तर दे कि विधे, सुग ज्यो सूरत दे कान ॥ १ ॥ एक दिवस सभा मझे, हं बेठा करो मंडाण | कोटवाल इक चोरटो, मोनें सूप्यो आण ॥ २ ॥ 1 ॥ ढाल १४ मी ॥ जीवता चोर ने तोलियोजी । करौ मसोसी ने घात । पारख्या करवा जीवनौनी । मैं खैरु कियो तोलमान || मुनीश्वर किम सरधु तुम बात ॥ १ ॥ मारो ने वले तोलियोजौ । न घट्यो मूल लिगार | म्हारे तो वैसे नहीं जो । थे मेलो भेद अपार ॥ मु० ॥ २ ॥ दूण न्याय मत म्हांरो खरोजी । जीव काया है एक । साची श्रद्धा मांहरौ जौ । थे तो मेलो हेत अनेक मु० ॥ ३ ॥ चोर मुवे में नौवतो नौ । फेर पड़त तिलमात तो न्यारा कर जाणतो जो । मानतो थारौ बात ॥ मु० 1
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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