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________________ .. ॥ ढाल १३ मी ॥ . गुरु कहै तरुण पुरुष में । तू समरथ जागा राजा न हो परदेशी। ताण को छै अति घणौ। पिण सुरण तू सूरत दे कान हो प्रदेशौ ॥ तू सरथ जू दा जीव काय ॥ १ ॥ धन खरची बंधो नहौं । सरक आल पांषन थोय हो प्र० । बोहिज तरूण पुरुष छ । बाण चलाय के न चलाय हो ॥ प्र० ॥ २ ॥ राय कहै बाण चाले नहौं । उपग्रण अंदूरी जाण हो मुनीश्वरं । इण्ड दृष्टान्त जाण ले । बालक नहीं चलावे बाण हो प्र० ॥ ३ ॥ वालक री ओछौ बुद्ध प्रगन्यां । बल प्राक्रम नहीं पर हो प्र० ॥४॥त तरुणा से काव साज सजोर न चाले काय हो प्र० ॥ तौर कबाण सैंठा घणा । पिण बालक बल नहौं काय हो ॥ प्र० ॥ ५ ॥ तो दोन पूरा समरथ हुवा। बलवंत में जुगत कबाण हो प्र० दोन्यां में एक पूरो नहौं ! तो चाले नहीं वाण हो ग्रं.' ॥ ६ ॥ दूण न्याय तू सरध ले। ज दा जीव में काय हो प० राय कहै दिल बैसे नहौं। थे तो मेलो अण हुता न्याय हो मुनीश्वर ॥ ७ ॥ छठो प्रश्न पूछे वलि । कोई वलवन्त पुरुष प्रधान हो मुनीश्वर। लोह तांबादिक धात नो । भार उठावा ? सावधान हो मुनीश्वर
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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