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________________ 40 ( ६० ) उपना । तिगरी क्यु' नहीं बेठो रे ॥ प० ॥ १८ ॥ इ न्याय राजा तांह रे । रहगई भोलप मोटो रे । सरध जदा जौव काय नें । तू छोड दे सरंधा खोटी रे ॥ प० ॥ १८ ॥ कारण हेत जुगत करौ । न्याय मेलण बुड्ड सेठौर | मिग थांरौ श्रद्धा थां कने । हारे तो मल न बैठी रे ॥ प० ॥ २० ॥ ॥ दोहा ॥ - प्रश्न पूछूं पांच सों, जौव काया एक जान | साची श्रद्धा मांहरी, कूडौ न करूँ ताण ॥१॥ कोई चतुर है मानवी, कला शिल्प विज्ञान | समरथ सगला काम में, बलवंत तरुण नवान ||२| तौर कबाण हाथे ग्रहौ, वल सु' गाठी खांच | अलगो न्हाखे जोर सु', बाण चलावे पाय ॥३॥ तिमहिज बालक बुद्धि बिना, जल सु' बाण चलाय । तो सांची श्रद्धा तांहरी, जदो नौव नें काय ॥४॥ थे जीव गियो सव सारसा, नगियो सह में देख । बालक सुनाय चले, तो जीव काया है एक ॥५
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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