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________________ शीतल गहरी छांयरे ॥ गो० ॥ २ ॥ तिण नगरौ रो छो धोरे । राय प्रदेशौ नाम । अधरमौ अधिको धणोरे । रिझतो माठा कामरे । ॥ गो० ॥ ३ ॥ आकरा कर . लेती घणारे । करतो जीवांरी घात । पर मुखिये दुःखियो हुतोरे । रहता लोही खरड़या हाथरे ॥ गो० ॥ ४ ॥ धजा ज्यूं चाहवो इंतोरे । अधरमी अवनौत। पापे धन भेलो करै रे। दुष्ट नौ खोटो नौत रे ॥ गो० ॥ ५ ॥ बाणी खोटी बोलतोरे। थोड़े गुने घणी मार ॥ । कागा न राखै केहनौ रे । रुद्र ध्यान भयंकार रे ॥ गो० ॥६॥ हाथ पाव छेदन करै रे । कान आंख जीम : दांत ॥ मार कूट दे बहु विधेरे । पड़े देशां में धाकरे । गो० ॥ ७॥ थड़ हड़ काम्पे नेड़ा-थका. रे । अलगा पाप वचन ॥..औसं रो-तो कुछ चले रे । न माने-माइता-रा-बैग्णरे ॥ गो ॥८॥ पटरायौ तिसराय नौ रे। सूरिकन्ता नाम ॥ राजा सुराजी घमो रे । रूप- . वंत अभिराम रे ॥ गो० ॥६॥ तिण राणी रे । जनमियो रे । सुरिकन्त कुमार ॥ युवराज पदवी दोपतोरे।। रूप गुणे मुविचार रे ॥ गो० ॥ १० ॥ बडोभाई चित खारयो रे । प्रोतकारी प्रधान ॥ भार सुप्यो छै राज नो रे । राय बधार मान रे ॥ गो० ॥ ११॥ नाम चलावे राज नो रे । च्चार वद्धि निधान ॥ डंड ले.
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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