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________________ ॥दोहा॥ बन्दणा करने इम कहै, हूं सुरियाभ देव । बान्दु छं हूँ पूज्य ने, भाव सहित कर सेव ॥१॥ बलता वीर इसड़ी कहै, ओकारज सुखकार ।। च्यारू नातना देव नो, ज नो छै आचार ॥ २ ॥ बचन सुण्यो श्रीवौरनो, सूरियोभ हर्षित थाय । बन्दना करी नौचासणे, सन्मुख बेठो आय ॥३॥ भगवन्त दौधौ देशना, आण मोटो मंडाण । काचा सुख संमार ना, साचा सुख निर्वाण ॥४॥ बाणी सुण ने परषधा, हिवड़े हर्षित थाय । सूरियाभ देव पूछा कर,ते सुण ज्यो चित लाय॥५॥ ॥ढाल ४ थी॥ सूरियाभ में बोले बकर जोड़ी। विनो करी में मदन मचकोड़ी। कृपा करी कहो अन्तरजामौ । हूं भवसिद्ध के अभवो खामौ ॥ १ ॥ समकित के वा मिथ्या मत भारी । प्रत के वा अप्रत संसारौ। सुलभ टुलभ बोधी ज्ञानी । आराधक विराधक अज्ञानी ॥२॥ चर्म फेवा अचर्म खामी प्रभुजौ । बार बोलारी चरचा बूजी । बलता वौर कहै इम जावे। सांभल बाणी तू सूरियाभ ध्यावे ॥ ३ ॥ बारे ही बोल है तेरे माहौ।
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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