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________________ ( ३० ) 1 अहो निशि करत है सेवरे ॥ ३ ॥ वले अनेरा देवता । वैसे सूरियाभ ने पास रे । तेहनें संग परवस्यो थकी । लौला करे मन हुलास रे || पु० ॥ ४ ॥ तिण विरियां सूरियाभ तो । दौधो अवध गिनान रे ॥ बाग में वौर ने देख नें । पामियो हर्ष अशमान रे ॥ पु० ॥ ५ ॥ उठियो बेग सतावसुं । बले उत्तगसण कौधो तेहरे ॥ सात आठ पग स्हामो जाय नें । नमोत्यु गां करो धर नेहरे | पु० ॥ ६ ॥ एक कियो के सिद्धां भगौ । दूसरो वौर ने कौधरे ॥ देखो को आप उहां घको । एम बोल्यो मन लहलौन रे ॥ पुः ॥ ७ ॥ वले सूरियाभ मन चिन्तवे । नाम सुख्खा हुलसाय रे ॥ अरिहन्त ने रे भगवन्त में । दौठांइ दुःख टल जाय ॥ पु० ॥ ८ ॥ बाणी सुगी बनणा कियां । पर भव में मुख होय रे ॥ दुःख दालिद्र देखें नहीं । शंका नहीं तिल कोय रे ॥ पु० || ८ || एहवो करौ विचारणा । सेवग देवने तेड़र े । वेग जा जम्बूर े दौप में । वौर जिनेश्वर केडर ॥ पु० ॥ १० ॥ भगवन्त में बन्दणा करे । दे सत्कार सन्मान रे || मांडलो निपट चोखो कर े । एक जोजन परिमाणरे ॥ पु० ॥ ११ ॥ अगर तगर गंध वटौ । फेर सुगन्ध कर चंपरे । मोह पहलग रिषेवने । आगन्या . पाछी संपरे ॥ ५० ॥ २२ए सूरियाभ कयां थकां ।
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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