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________________ श्री प्रदेशी राजा री संघ | ॥ दोहा ॥ संघ प्रदेशौराय नी, राय प्रसेखी मांय । तिण अनुसार हूं, कहूँ सांभलज्यो चित लाय ॥१॥ अमल कम्मा नगरी तिहां, अंबशाल ना बाग | तिहां श्री वौर समोसा भव जीवांरे भाग ॥२॥ खवर हुइ नगरी मांहि लोक बांदा ने जाय । सेन गजा पिया आवियो सेव करे चित लाय || ३ || च्या दिशा देवता आया वन्दण काज | लुल लुल नें लटका करे धन्य दिहाड़ी आज || ४ ॥ ॥ ढाल १ ली ॥ सरियाभ देव लिंग अवसरे बेठो सरियाभ बिमागरे । प्रथम देवलोक सुधर्मी सभा सह परवार संग जाण ॥ पून्य तथा फल एहवा || १ || सामानिक च्यार हजार रे । अग्रमहेषी च्यारे भली । ते पिंग सहित परिवार रे ॥ २ ॥ परषधा तीन साते अणी आतम रक्षक ग देवरे । सोले हो सहस्र सूरियाभ नौ !
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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