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( १६ ) (६) ज्ञान बिना दया नहीं दया चारित्र एक ही कह्या सा० सू० दशव कालिक, अ० ४, गा १०.
(७) असंजती अब्रती अपञ्चखाणीने सूजतो : असूजतो फासु अफासु देव तिणने एकान्त पाप कह्यो में निर्जरा नधौ । सा० स० भगवती, श० ८, उ० ६.
(८) सोश्वता असावता रौ खबर नहौं तिण ने बोध रहित कह्यो । सो० सू० प्र० सूबगड़ांग अ० १, उ० २, गा० ४.. . (६) साधु थोड़ा असाधु घमा । सा० सू० दशवैकालि, अ. ७, गा० ४८.
(१०) साधुरे सर्व थको प्राणातिपात का त्याग छै तिणरे अपञ्चक्खाणगै परिग्रह रौ क्रिया नहीं। सा० सू० पन्नवणा, पद २२.
(११) साधु रो आहार असावद्य कह्यो साधु रो आहार बुत में कह्या साधु पाप रहित छै । सा० सू० दशव कालिक, अ० ५, उ० १, गा० ६२.
(१२) भगवान् श्री महावीर स्वामी ठंडो आहार घणा दिना रो लोपनो लियो। सा० स० प्र० आचारांग, अ०८, उ. ४, गा० १३.
(१३) केवल ज्ञानी परूप्यां बिना आप आपरी प्ररूपणा करे जिके ने किंचित माल जाणपणो नहीं।