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________________ ( १४० ) ६ कर्म छांडवा जोग के बदरवा जोग, छांडवा जोग है । ७ चाट कर्मा से पुन्य कितना पाप कितना ज्ञानावर्णी, दर्शयावर्णो, दर्शणावर्णी, मोहनीय, अन्त राय, ए च्चार कर्म तो एकान्त माम है, बेदनी, नाम, गोत्र, चालु ए च्यीर का पुज्य पाप दोनू' हौं है । ॥ लडी २० बीसमी ॥ १ धर्म जीव के अजीव जौव है । २ धर्म सावद्य के निरaa free है 1 ३ धर्म श्राज्ञा मांहि से बाहर श्री वितराग देवकी याज्ञा मांहि है । ४ धर्म चोर के साहकार साहूकार ५ धर्म रूप के चरूपी पी है। ६ धर्म छांडवा जोग की चादग्या लोग चादरवा जोग है । 1 ७* धर्म पुन्य के माप दोनू' नहीं किन्वाय धर्म तो जौव है पुण्य पाप जीव है । ॥ लडी २१ इक्कीसभी ॥ १ अधर्म जीव दो जीव जीव के
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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