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________________ । १२६ ) मिथ्यात्वे अबत प्रमाद कषाय ए च्यार तो आज्ञा बाहिर छै अने जोग नां दोय भेद शुभ जोग तो आज्ञा मांहि छै अशुभ जोग आज्ञा बाहिर है। ६ संबर अाज्ञा मांहि के बाहिर, आज्ञा मांहि छै .ते किणन्याय कर्म रोकवारा परिणाम आज्ञा . मांहि । ७ निर्जरा अज्ञा मांहिके बाहर, आज्ञा माहि के ते किणन्याय कर्म तोडवारा परिणाम आज्ञा मांहि है। ८ बंध प्राज्ञा मांहिके बाहर, दोन नहौं ते किणन्याय, जाज्ञा मांहि बाहर तो जीव हुवे ए बंध तो अजीव छै इन्चाय।। है मोक्ष आज्ञा माहिके बाहर, आज्ञा माहि छै ते किणान्याय, कर्म दूकाय सिद्ध थया ते आज्ञा में है। ॥लडी चौथो जीव अजीवकी ॥ १ जीव ते जोव छै के अजीव, जीव । ते किणन्या सदाकाल जौवको जीव रहसे अजीव कदे 'हुवे नहीं। जीत के के अजीव छै, अजीव छै अजी
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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