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________________ ६ गोशाला नो जीव विमलवाहन राजा ने सुमंगल __नामे अणगार, तेज लब्धि करौ हणस्ये । (भगवती श० १५) ७ खंधक नामे अणगार संथारो कीधो तिहां 'बालोइय पडिक्षन्ते' पाठ कह्यो। (भगवती श० २ उ०१) ८ तिसक मुनिने छेहडै तिहां 'आलोइय पडिकन्ते' पाठ कह्यो। (भगवती श० ३ उ०१) ६ कार्तिक सेठने छेहडै तिहां 'आलोइय पडिकन्ते' पाठ कयो। (भगवती श० १८ उ० २) १० कषाय कुशौल नियण्ठा नो वर्णन। (भगवती श० २५ उ० ६) ११ दृष्टिवाद नो धणी पिण वचन खलावै । (दशकालिक अ० ८ गा०५०) १२ अनुत्तर विमाण ना देवता उदौर्ण मोह नयौ, चने क्षौण मोह नधी, उपशांत मोह छै। (भगवती श०५ उ०४) १३ हाथौ अने कथा के अपञ्चखाण की क्रिया समान कही। (भगवती श० ७ उ०८)
SR No.010204
Book TitleJain Bhajan Mala
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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