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________________ १०८ जन, बोड और माता का समाव वर्शन उपर्युक्त और अन्य कितने ही आचार नियम ऐसे है, जो जन-नीति की सामाजिक सार्थकता को स्पष्ट करते है । आवश्यकता इस बात की है कि हम आधुनिक सन्दर्भ में उनकी व्याख्या एवं समीक्षा करें तथा उन्हें युगानुकूल बनाकर प्रस्तुत करें। बोड-परम्परा में सामाजिक धर्म-बौद्ध परम्परा में भी धर्म के सामाजिक पहलू पर प्रकाश डाला गया है। बुद्ध ने स्वयं ही सामाजिक प्रगति के कुछ नियमों का निर्देश किया है। बुद्ध के अनुसार सामाजिक प्रगति के सात नियम है:-१. बारबार एकत्र होना, २. सभी का एकत्र होना, ३. निश्चित नियमों का पालन करना तथा जिन नियमों का विधान नहीं किया गया है, उनके सम्बन्ध में यह नहीं कहना कि ये विधान किये गये है, अर्थात् नियमों का निर्माण कर उन नियमों के अनुसार हा माचरण करना, ४. अपने यहां के वृद्ध राजनीतिज्ञों का मान रखना और उनसे यथावसर परामर्श प्राप्त करते रहना, ५. विवाहित और अविवाहित स्त्रियों पर अत्याचार नहीं करना और उन्हें उचित मान दना, ६. नगर के और बाहर के देवस्थानों का समुचित रूप से संरक्षण करना और ७. अपने राज्य में आये हुए अर्हन्तों (वीतराग पुरुषों) को किसी प्रकार का कष्ट न हो तथा न आये हुए अहंन्तों को राज्य में आने के लिए प्रोत्साहन मिले ऐसी सावधानी रखना । बुद्ध ने उपर्युक्त सात अभ्युदय के नियमों का प्रतिपादन किया था और यह बताया था कि यदि (वज्जी) गण इन नियमों का पालन करता रहेगा तो उसको उन्नति होगी, अवनति नहीं। बुद्ध ने जैसे गृहस्थ वर्ग की उन्नति के नियम बताये, वैसे ही भिक्षु संघ के सामाजिक नियमों का भी विधान किया जिससे संघ में विवाद उत्पन्न न हो और संगठन बना रहे । बुद्ध के अनुमार इन नियमों का पालन करने से संघ में संगठन और एकता बनी रहती है-१. मैत्रीपूर्ण कायिक कर्म, २. मैत्रीपूर्ण वाचिक कर्म, ३ मैत्रीपूर्ण मानसिक कर्म, ४. उपासकों से प्राप्त दान का सारे संघ के साथ सम-विभाजन, ५. अपने शील में किंचित् भी त्रुटि न रहने देना और ६. आर्य श्रावक को शोभा देने वाली सम्यक् दृष्टि रखना । इस प्रकार बुद्ध ने भिक्षु संच और गृहस्थ संघ दोनों के ही सामाजिक जीवन के विकास एवं प्रगति के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश किया है। इतिवृत्तक में सामाजिक विघटन या सघ की फूट और सामाजिक संगठन या संघ के मेल (एकता) के दुष्परिणामों एवं सुपरिणामों की भी बुद्ध ने चर्चा को है। बुद्ध की दृष्टि में जीवन के सामाजिक पक्ष का महत्त्व अत्यन्त स्पष्ट था। अंगुत्तर. निकाय मे बुद्ध ने सामाजिक जीवन के चार सूत्र प्रस्तुत किये है, जो इस प्रकार है:१. दानशीलता, २. स्नेहपूर्ण वचन, ३. बिना प्रतिफल के किया गया कार्य और १. उद्धृत-भगवान बुद्ध, पृ० ३१३-१८ ३. इतिवृत्तक, २२८-९ २. उद्धृत भगवान बुद्ध, पृ. १६६
SR No.010203
Book TitleJain Bauddh aur Gita ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1982
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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