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________________ सामाजिक एवं गायित्व ११. अपनी सम्पत्ति का परिसीमन करो और उसे लोक हितार्थ व्यय करो। १२. अपने व्यवसाय के क्षेत्र को सीमित करो और वजित व्यवसाय मत करो। १३. अपनी उपभोग सामग्री की मर्यादा करो और उसका अति संग्रह मत करो। १४. ये सभी कार्य मत करो, जिससे तुम्हारा कोई हित नहीं होता है । १५. यथा सम्भव अतिथियों की, सन्तजनों को, पीड़ित एवं असहाय व्यक्तियों को सेवा करो। अन्न, वस्त्र, आवास, औषधि आदि के द्वारा उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करो। १६. क्रोष मत करो, सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करो। १७. दूसरों की अवमानना मत करो, विनीत बनो, दूसरों का आदर-सम्मान करो। १८. कपटपूर्ण व्यवहार मत करो। दूसरों के प्रति व्यवहार में निश्छल एवं प्रामाणिक रहो। १९. तृष्णा मत रखो, आसक्ति मत बढ़ाओ। २०. न्याय-नीति से धन उपार्जन करो । २१. शिष्ट पुरुषों के आचार की प्रशंसा करो। २२. प्रसिद्ध देशाचार का पालन करो। २३. सदाचारी पुरुषों की संगति करो । २४. माता-पिता को सेवा-भक्ति करो । २१. रगड़े-मगड़े और बखेड़े पैदा करने वाली जगह से दूर रहो, अर्थात् चित्त में लोभ उत्पन्न करने वाले स्थान में न रहो। २६. आय के अनुसार व्यय करो। २७. अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार वस्त्र पहनी । २८. धर्म के साथ अर्थ-पुरुषार्थ, काम-पुरुषार्थ और मोक्ष-पुरुषार्थ का इस प्रकार सेवन करो कि कोई किसी का बाधक न हो। २९. अतिथि और साधु जनों का यथायोग्य सत्कार करो। ३०. कभी दुराग्रह के वशीभून न होओ। ३१. देश और काल के प्रतिकूल आचरण न करो। ३२. जिनके पालन-पोपण करने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर हो, उनका पालन-पोषण करो। ३३. अपने प्रति किये हुए उपकार को नम्रता पूर्वक स्वीकार करो। ३४. अपने सदाचार एवं सेवा कार्य के द्वारा जनता का प्रेम सम्पादित करो। ३५. लज्जाशील बनो । अनुचित कार्य करने में लज्जा का अनुभव करो। ३६. परोपकार करने में उद्यत रहो। दूसरों की सेवा करने का अवसर आने पर पीछे मत हटो।
SR No.010203
Book TitleJain Bauddh aur Gita ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1982
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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