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________________ जैनपालगुटका प्रथम भागा, ६ औषधि विलेपन, ७तांबूल ८ पुष्प,सुगन्ध, ९ नृत्य, १० गीतश्रवण, ११ स्नान, १२ ब्रह्मचर्य, १३ आभूषण, १४ वस्त्र १५ शय्या, १६ औषधि खानी, १७ सवारी.करना॥ नोट-इन में से हर रोज जिस जिस की जरूरत हो उसका परिमाण राखे कि आज यह काग, बाकी प्रतिदिन त्याग किया करे ।। , - श्रावकों के २१ उत्तर गण । ... १ लज्जावन्त, २ दयावन्त, ३ प्रसन्नता, ४. प्रतीतिवन्त, ५परदोषाच्छादन, परोपकारी, ७सौम्यदृष्टी, गुणग्राही,९श्रेष्ठपंक्षी, १. मिष्ट वचनी, ११दीर्घविचारी, १२ दानवन्त, १३ शील चन्त, १४ कृतज्ञ, १५ तत्त्वज्ञ, १६ धर्मज्ञ, १७ मिथ्यात्व रहित; १८ __सन्तोषवंत,१९स्याद्वाद भाषी,२०अभक्ष्यत्यागी,२१षट्कर्म प्रवीण। श्रावक के नित्य षट् कम्म। .... षट नाम छै का है १ देव पूजा, २ गुरुसेवा, ३ स्वाध्याय, ४संयम, ५ तप, ६ दान, । यह छे कर्म श्रावकके नित्य करनेके हैं। ५७-आश्रव। ५ मिथ्यास्त्र, १२ अविरति, २५ कषाय,१५ योग । . . ५-मिथ्यात्व।। १ एकांत मिथ्यात्व, रविपरीत मिथ्यात्व, विनय मिथ्यात्व, ४ संशयमिथ्यात्व, ५ अज्ञानमिथ्यात्व ।। . १२-अविरति। .१ पृथिवी, अप् , (जल), ३तेज, (आग), ४वायु, ५वनस्पति, ६ प्रस, इन छै काय के जीवों में अदया रूय प्रवर्तना, स्पर्शन,
SR No.010200
Book TitleJain Bal Gutka Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherGyanchand Jaini
Publication Year1911
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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