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________________ जैनवाकगुटका प्रथम भाग | ५५ जहितही पका लेते हैं रातको काने बैंगन मिंडीतोरी मादि तरकारी बगैर सोधे बनार कर कीडों सहित ही पका लेते हैं अन्य मतियों के इस बात को न घिन है न क्रिया, सो उनके घरका भोजन रात्रि भोजन समान है अन्धेरे के मकानमें दिनमें भोजनखानां जहां भोजन में वाल सुरसरी चावलों में कोड़ा नजर न मावे या दिन में भी बगैर देखे air faraभोजन पकाना यह सब रात्री भोजन में है. रात्री भोजन पकाने वाले भमेक वार दाल तरकारी में चौमासे वगैरा में गिरे पडे भीडको कौरा जानवर पका लेते हैं रात्री को भोजन करने वाले अनेक बार भोजन में चढ़ी हुई कीड़ी भादि या गिरे हुए मच्छर वगैरा जोष भक्षण करते हैं पस रात्री भोजन मांस मक्षण समान है सो जो जैनो नाम धराय रात्री को भोजन करते हैं वह भपने धर्म और कुल के विरुद्ध रस आचरण के पाप से भव भव में दुःख भुकते हुए भ्रमण करें हैं ॥ यह श्रावक की ५३ क्रियाओं का वर्णन समाप्त हुवा | ४ प्रकारका आहार । ?. १खाद्य, २स्वाद्य, ३लेग्र, १ पेय, (१ अन्न, २ पान, ३ खाद्य, ४स्वाय) १ समझावट - भात रोटी दाल खिचड़ी पूरी परोधठा लड्डू, घेवर, आदि मिठाई या आम, सेव आदि जो वस्तु खाइये है खाद्य है । २ इलायची सुपारी पान वगैरा जो अपनी तबियत खुश करने को ऐसी वस्तु खाइये हैं जिन में स्वाद (जायका) तो भवे परंतु पेट नहीं भरे वे स्वाद्य है । ● मलाई चटनी वगैरा जो चाटने के योग्य चीजें हैं वे सब लेख में शुमार हैं। (रत्नकरण्ड श्रावकाचार के १४२ श्लोक के भर्थ से विचार लेवें) | ४ दुग्ध, शर्वत, रस, जल, आदि जे वस्तु पोईये हैं वे पेय हैं ॥ मोट - जो दवा पीड़ जावे वह पेय में है जो खाई जावे वह खाद्य में है । दातार के २१ गुण ९ नवधा भक्ति, गुण, ५ आभूषण | यह २१ गुण दातारके हैं अर्थात् पात्र को दान देने वाले दावार में यह २१ गुण होने चाहियें ॥
SR No.010200
Book TitleJain Bal Gutka Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherGyanchand Jaini
Publication Year1911
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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