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________________ जैनवालगुटका प्रथम नागी ८प्रत्येक प्रजाति। १ पर घात २ उच्छ्वास ३ आताप ४ उद्योत ५ अगुरु ६ लघु ७विहायोगति ८ उपघात ।। १० वसादिक प्रजाति। १ त्रस २ वादर ३ पर्याप्त ४ प्रत्येक ५ स्थिर ६ शुभ ७ सुभग ८ सुस्वर९ आदेय १० यशःकार्ति ॥ १० स्थावरादिक प्रकृति। १ स्थावर २ सूक्ष्म ३ अपर्याप्त ४ साधारण ५ अस्थिर ६ अशुभ ७ दुर्भग ८ दुस्वर ९ अनादेय १० अपयश ॥ नोट-यह ८ कर्म की १४८ प्रकृति कही। __ अथ७ तत्व १ जीव, २ अजीव, ३ आश्रव, ४बंध, ५संवर, ६निर्जरा, ७मोक्ष । पदार्थ । . . . . सात तत्त्व के साथ पाप पुण्यामलाने से यह ९ पदार्थ कहलाते हैं। चोट-श्रावक को इन का स्वरूपं जानना जारी है। ___ अथ तव शब्द का अर्थ। तत्व शब्द उस जाति का शब्द है जो शब्द तो हो एक और उसके अर्थ हों अनेक, सो संस्कृत कोषों में तत्व शब्द के भी कईक अर्थ हैं। असलियत भी है,रसनो है,रूप भीहै, अनासर भी है,पदार्थ मोहै, परमात्मा मोहै, विलम्बित नृत्य भी है, और सांख्यमत शास्त्रोक्त प्रकृति भी हैं महत, अहंकार, मनः भी है, पंच भूत भी है पंचतन्माना भी है पंच ज्ञान इद्रिय और पंच कर्मेन्द्रिय आदि कईक हैं चूंकि तत्व छान नाम ब्रह्म शान यथार्थ ज्ञानं भारिमक शान रुहानी इलम का है यानि तत्व जो परमात्मा उसका जो ज्ञान उस को तत्व ज्ञान कहते हैं. तत्व दशी ब्रह्मज्ञानी, मात्मिक शान वाला, असलियत के देखने वाले को कहते हैं यद्यपि
SR No.010200
Book TitleJain Bal Gutka Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherGyanchand Jaini
Publication Year1911
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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