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________________ जैनवालगुटका प्रथम भाग | ४ काय के टेव । · १ भवनवासी २ व्यंतर ३ ज्योतिषी ४ वैमानिक ( कल्पवासी) । १० प्रकार के भवनवासी देव । १ असुरकुमार २ नागकुमार ३ विद्युत्कुमार ४ सुवर्णकुमार ५ अग्नि कुमार ६ पवनकुमार ७ स्तनितकुमार ८ उदधिकुमार ९ द्वीप कुमार १० विक्कुमार ॥ ८ प्रकार के व्यंतर देव । १ किन्नर २ किम्पुरुष ३ महोरग ४ गंधर्व ५ यक्ष ६ राक्षस ७ भूत पिशाच । ५ प्रकार के ज्योतिषी देव | १ सूर्य २ चंद्रमा ३ ग्रह ४ नक्षत्र ५ तारे । १६ प्रकार के वैमानिक (कल्प वासी) देव । नोट - इनके वही नाम हैं जो १६ स्वर्गों के हैं। ६ द्रव्य | १ जीव २ अजीव ३ धर्म 8 अधर्म ५ काल ६ आकाश ॥ पञ्चास्तिकाय । छ द्रव्यों में से कालद्रव्य निकाल देने से बाकी के पांचों द्रव्य पंचास्तिकाय कहलाते हैं अर्थात् कालद्रव्य के काय नहीं है बाकी पांचों द्रव्यों के काय. हैं। ५ लब्धि | 1. क्षयोपशम लब्धि, २ विशुद्धलब्धि, ३ देशना लब्धि, ४ प्रायोग लब्धि, ५ करण लब्धि ॥ 1 नोट-इन में चार तो हर जीव के हो सकती हैं परन्तु पंचमी करण लेग्धि निकट भव्य के ही होय है । 1 A! ܕ ܪ
SR No.010200
Book TitleJain Bal Gutka Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherGyanchand Jaini
Publication Year1911
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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