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________________ जैनयाल गुटका प्रथम भाग। " दूसरे सिद्धक्षेत्रों के नाम । १ मांगीतुंगी २ मुक्तागिार (मेढगिरि)३ सिद्धवरकूट (ओंकार) ४पावागिरि ५ शत्रुजय (पालीताना) ६ बडवानी (चूलगिरि) ७ सोनागिरि नैनागिरि (नैनानंद) ९ दौनागिरि (सदेपा) १० तारंगा ११ कुंथुगिरि १२ गजपंथ १३ राजगृही पंचपहाड़ी) १४ गुणावा (नवादा) १५ पटना १६ कोटिशिला १७ चौरासी। मोट--इसका मतलब यह नहीं समझना कितने हो सिद्धक्षेत्र हैं इसके इलावे और भी बहुत है परन्तु कालदोष से यह मालूम नही रहा है कि वह कहां हैं इसलिए ५ तोर्थकर निर्वाणक्षेत्र और १६ दूसरे जो इस समय प्रसिद्ध हैं वही २१ यहां लिखे हे निर्वाणकांड रचताने भी जो पाठ रचने के समय आम मशहूर थे उसमें घही वर्णन किए हैं बाकी के सिद्धक्षेत्रों को आखीर में तीन लोक के तीण में नमस्कार करा है। अतिशय क्षेत्रों के नाम १ अहिक्षतजो २ चंदेरी ३ थोवनजी ४पपोराजी ५ खजराहा ६ कुण्डलपुर ७ वनड़ा ८ अंतरिक्ष पार्श्वनाथ.९. कारंजयजी १० भातकुली ११ रामटेक १२ आबूजी१३ केसरियानाथ१४ चांदनपुर . १५जैनबद्री१६ कानूरग्राम १७ मूलबद्री १८ कारकूल १९ बारंगनगर २० चोरासी मथुरा के पास है। नोट-चौरासी को जम्बूस्वामी का निर्माण क्षेत्र भी कहते हैं परंतु घाज शास्त्रों में जस्यूस्वामी का निर्वाण राज गृही (पंच पहाडी) में लिखा है इस कारण से हमने इस अतिशय क्षेत्रों में भी लिखा है अहिक्षतजी को रामनगर जैन बद्रीको भ्रवण विगलोर या गोमठ स्वामी मूलबद्री को सहस्र फूट, केसरियानाथ को काला वावा चांदनपुर को महावीर भी कहते हैं, यह अतिशय, संयुक्त जैन तीर्थ हैं तीर्थं से कहते हैं जिस कर भन्य जीव भवसागर कोतिरे इन का विशेष हाल जैनतीर्थ यात्रा मह!
SR No.010200
Book TitleJain Bal Gutka Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherGyanchand Jaini
Publication Year1911
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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