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________________ जैनयलागुटका प्रथम भाग। अथ श्री सम्मेदशिखर जी के दर्शन। - moo RILMS RSESIDESEX T - HALASS SBE . AN . " -- . NITA . . ." .4 ५५चको 4 AM TEN SSERASAYARIA - - DTTA m इस श्री सम्मेद शिखर के नकशे में एक तरफ पूर्वदिशा में सबसे ऊची टोक नम्बर ९श्री चन्द्रप्रभ की है दूसरी पश्चिम दिशा में सबसे ऊञ्चो टोक नम्वर २४ श्री पार्श्व नाथ तीर्थंकर की है इस पर्वत से २० तीर्थकर और अलख्यात केवली मोक्ष गये है पर्वत पर २४ तीर्थकरो की चौवोस ही टीक है । यह चौवीस टोक होने का कारण यह है कि एक कल्पकाल २० कोटा कोटो सागर का होय है जिस में १० कोटा कोटो सागर का पहला अव सर्पणी काल १० कोटा कोटी सागर का दूसरा उत्सर्पणी काल सो जितने अनंतानंत कल्पकाल गुजर चुके हैं उन में सिवाय इस कालके जितनी चौवीसी हुई है सब इली पर्वत से मोक्ष को गई है प्रलयकालके वाद और पर्वतो का यह नियम नहींकि जहां पहले था वहां ही फिर धने परंतु यह श्रीसम्मेद शिखर हर प्रलय के बाद यहां ही बनता है और चौवीसो इसी से मोक्षको जाती है इस लिये चौबीसों ट्रोक ही पूजनीक है। ___ जव पहाड़ पर यात्रा करने चढ़ते हैं तो सबसे पहले टौंक १ श्रीकुन्थु नाथकी टोंक पर जाते हैं फिर पूर्व दिशा में दूसरी टौक श्री नमिनाथ की है, ३ अरनाथ की है । मल्लिनाथ की ५श्रेयांस नाथ की पुष्पदन्त की ७ पद्मप्रम को सुनि सुव्रतनाथ की ९ चंद्रप्रभ की १० भादि नाथ की ११ शीतलनाथ की १२ मनंतनाथ की १३ सभवनाथ की
SR No.010200
Book TitleJain Bal Gutka Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherGyanchand Jaini
Publication Year1911
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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