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________________ 127 'प्राचारों और दार्शनिक सिद्धांतों का भी संक्षेप में परिचय दिया है। पुस्तक जैन आगमों के आधार से लिखी गई है। . Jainism and Modern Thought' के नाम से श्री शोफ द्वारा लिखी गई एक छोटी-सी पुस्तिका स्वय लेखक द्वारा प्रकाशित हुई है। उसमें आधुनिक विचारों के साथ जैनधर्म के विचारों की संगति दिखाने का प्रयत्न है। श्री प्रेमीजी द्वारा संपादित होकर 'अर्धकथानक' की दूसरी आवृत्ति प्रकाशित हुई है। इस दूसरी श्रावृत्ति में डा० मोतीचंद्र और श्री बनारसीदास चतुर्वेदी के परिचच लेखों के अलावा संबद्ध अन्य नई उपलब्ध सामग्री भी प्रेमीजी ने दी है। ___ श्री धर्मानंद कोसंबी द्वारा मराठी में लिखित 'पार्श्वनाथाचा चातुर्याम धर्म का हिन्दी भाषान्तर 'पार्श्वनाथ का चातुर्याय धर्म के नाम से हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर बम्बई से प्रकाशित हुश्रा है। यह पुस्तक जैनधर्म के प्राचीन इतिहास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होगी। श्री जयसुखलाल शाह द्वारा सपादित होकर श्री जयंत मुनि के व्याख्यान 'प्रकाशित हुए हैं। व्याख्यानों में अहिंसा और मानवधर्म तथा समन्वय दृष्टि का अच्छा निरूपण है। तथा राजप्रश्नीय सूत्र के विषय में भी व्याख्यान इसमें सगृहीत हैं। ___Jaina Entiquary, जैन सिद्धांत भास्कर, अनेकान्त, जैन सस्य प्रकाश, जैन भारती श्रादि जैन पत्रिकाओं में जैनधर्म, दर्शन, इतिहास आदि विविध विषयों के लेख प्रकाशित हुए हैं। तदुपरांत निम्न महत्वपूर्ण लेख अन्यत्र प्रकाशित हुए हैं(1) Journal of the Asiatic Society (Letters) ___Vol, XXII. No. 1. 1956 -V(i) An Enquiry into Estern Apabhramsha : ___Dr. S. N. Ghosal (ii) Controversy over the Significance of Apabhramsha and a Compromise between- the views of Jacobi and Grierson : Dr. S. N. Ghosal
SR No.010199
Book TitleJain Adhyayan ki Pragati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras
Publication Year
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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