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________________ प्रधान सुझाव रखा है और श्रमण संघ और उसके प्राचारों के ग्रन्थगत तथ्यों का संवाद उपलब्ध शिला लेखों से भी दिखाया है। श्रमणों और बहुजन समाज में परस्पर प्राचारों के विषय में किस प्रकार आदान-प्रदान हुआ है यह भी सप्रमाण दिखाने का सफल प्रयत्न किया है। अब तक जैन दर्शन के विषय में तो अंग्रेजी में कुछ पुस्तकें उपलब्ध थी किन्तु जैन श्रमणों के प्राचारों का सांगोपांग निरूपण हुश्रा नहीं था। डा० देव की यह पुस्तक इस क्षेत्र में मार्गसूचक स्तंभ के रूप में हमें उपलब्ध हुई है । इस विषय के लिये कितनी विपुल सामग्री उपलब्ध है यह भी स्पष्ट हो गया है। ढा० देव इस क्षेत्र में अपना अध्ययन जारी रखें और ऐसे ही उत्कृष्ट ग्रन्थ को भेंट हमें देते रहें यही उनसे निवेदन है। प्राकृत और पालि भाषा के समासों का अध्ययन डा० दावने ने कुशलतापूर्वक करके प्राकृत भाषा के इस विषय के प्रध्ययन की जो कमी थी उसे दूर किया है । लेखक ने प्राकृत और पालि भापा के समासी के प्रयोगों का अध्ययन कालक्रम से विकासक्रम की दृष्टि से किया है । डा० दावने की यह पुस्तक प्राकृत और पालि भाषा के अध्येताओं के लिये कई नये तथ्यों को सप्रमाण उपस्थित करती है। खास कर प्राकृत वैयाकरणों ने अपने प्राकृत भाषा के व्याकरणों में समास प्रकरण दिया नहीं है। प्राकृत व्याकरण की इस कमी की पूति तो डा० दावने ने की ही है। साथ ही संस्कृत और पालि की तुलना में प्राकृत समासों की विशेषता का भी दिग्दर्शन हो गया है। जैन संस्कृति संशोधन मंडल द्वारा प्रकाशित जैन कला के क्षेत्र में लब्धप्रतिष्ठ विद्वान डा० उमाकान्त शाह का ग्रन्थ Studies in Jaina Art जैन कला विषयक एक महत्वपूर्ण पुस्तक सिद्ध होगी। विद्वान् लेखक ने इसमें उत्तर भारत में उपलब्ध जैन कला के महत्त्वपूर्ण अवशेषों की विवेचना की है। तथा जैन पूजा के प्रतीकों की ऐतिहासिक आलोचना सर्वप्रथम व्यवस्थित रूप से करने का श्रेय भी प्राप्त किया है। इतना ही नहीं किन्तु गुर्जर शिल्प कला का पार्थक्य विद्वानों के समक्ष सप्रमाण उपस्थित करने का सत्प्रयत्न भी इस ग्रन्थ में लेखक ने किया है। पुस्तक जैन कला के विषय में अपूर्व है इतना ही नहीं किन्तु प्रतिपाद्य विषय का सांगोपांग प्रामाणिक निरूपण भी उपस्थित करती है। ____ हामवूर्ग से Blubn का महानिबन्ध शीलांककृत 'चउपन्न महापुरुस चरिय' के विषय में प्रकाशित हुआ है यह सूचित करता है कि जकोवी की परंपरा जर्मनी - -- -amera
SR No.010199
Book TitleJain Adhyayan ki Pragati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras
Publication Year
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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