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________________ आचार्य चरितावली ८३ भीमपल्ली ग्राम मे वर्षावास किया। उस समय उन्हे ज्ञान वल से मालूम हुया कि इस ग्राम का निकट भविष्य मे ही नाश होने वाला है। वहां पर अन्य गच्छ के भी ग्यारह प्राचार्य थे। उस वर्ष कात्तिक मास दो थे किन्तु प्राचार्य ने संघहानि का कारण देख कर प्रथम कात्तिक की चतुर्दशी को हो प्रतिक्रमण कर भीमपल्ली से विहार कर दिया। पर जो उपेक्षा कर वहा रहे उनको भयंकर कप्ट का सामना करना पडा ॥१४३।। लावणी॥ धर्मधोष जगम विष-पीड़ा जानी, सघ-विनय भारी में बेल पिछानी । जीर्ण द्वार में पागतजन से लीजे, दर्दहरण को घिस कर लेप करीजे । आजीवन तज विगय शुद्धि की भारी । लेकर० ॥१४४।। अर्थ --आचार्य धर्मघोष को संयोगवश एक बार जगम विष की पीड़ा हो गई। जैसे जैसे विषधर का जहर चढ़ता गया वैसे वैसे शनै शनै प्राचार्य को मूर्छा पाने लगी। इससे चिन्तित होकर संघ के प्रमुख लोग उनके उपचार के लिये विचार करने लगे। औषधोपचार से भी जव विष का उपशमन नही हुया तो संघ ने गुरु चरणो मे अपनी चिन्ता व्यक्त की । देह पर निर्ममत्व भाव होने पर भी प्राचार्य ने सघ के अाग्रह से एक उपाय बतलाया और कहा-"नगर के वाहर से एक पुरुप काप्ठ की भारी लेकर पा रहा है, उसमे एक विपापहारिणी वेल है, जिसको घिसकर लगाने से कैसा भी विप हो उतर जाता है।" संघ ने वैसा ही किया। काप्ठ का भार लेकर आने वाले पुरुप से वह बेल प्राप्त की और आचार्य के शरीर पर उसका लेप किया जिससे शरीर स्वस्थ हुआ। आचार्य ने उस एक वेल के उपयोग रूप सूक्ष्म दोष के प्रतीकार हेतु
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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