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________________ १५४ प्राचार्य चरितावली , करसन जी देवकरण जी , डाह्याजी देवजी रगजी केशव जी , करमचन्द जी १४. , देवराजजी , मौणसी जी १६ , करमसी जी , १७. , व्रजपाल जी , १८. कानमल जी , १६. युवाचार्य श्री नागचन्द जी महा० । (कालक्रम से कच्छ समुदाय में भी विभाग हो गये जिनमे (१) आठ कोटि मोटी पक्ष और (२) आठ कोटि नानी पक्ष) आठ कोटि नानी पक्ष की प्राचार्य परम्परा १. पूज्य श्री करसनजी महाराज २. ॥ डाह्याजी , जसराजजी " वस्ताजी हंसराजजी ६. व्रज पाल जी , " डू गरशी जी , ८. , सामजी , विद्यमान है। १८५६ की साल में छ कोटि और आठ कोटि की तकरार होने से सघ मे फूट पड गई । दोनो के धर्म-स्थान अलग-अलग कर दिये गये। कहा जाता है कि अभी कई वर्षो से उसकी चर्चा न होने से संघ मे शान्ति है। Cm arus ;
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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