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________________ आचार्य चरितावली १४३ हृदय धनचन्द जी महाराज आदि विद्यमान है । धमाद्धारक श्री हरजी महाराज था हरजा महाराज कु वरजी के गच्छ से निकल कर धर्मोद्धार करने वाले ६ महापुरुपो मे से एक हैं, जिनका समय १६८६ के वाद का होना प्रतीत होता है। प्रभु वीर पद्यावली मे सं० १७८५ के बाद हरजी के क्रिया उद्धार का उल्लेख उपलब्ध होता है, परन्तु ऐतिहासिक घटनाग्रो के साथ इसका मेल नहीं खाता 1 । अतः सवत् १६८६ के प्रासपास ही इनका क्रिया उद्धार का काल होना माननीय है। . हरजी महाराज से भी कुछ मुख्य शाखाए प्रकट हुई, जो कोटा समुदाय और पूज्य श्री हुक्मीचन्दजी महाराज की समुदाय के नाम से प्रसिद्ध हैं । इन शाखाओ की प्राचार्य परम्परा इस प्रकार है . शाखा (अ) कोटा समुदाय की प्राचार्य परम्परा । (१) पृज्य हरजी ऋषि (२) पूज्य गोदाजी महाराज (३) पूज्य परसरामजी महाराज (४) पूज्य लोकमणजी महाराज . (५) श्री माया रामजी महाराज, (६) पूज्य दौलतरामजी महाराज (७) पूज्य श्री गोविन्दरामजी महाराज (८) श्री फतेहचन्दजी महाराज (१) पूज्य श्री हरदासजी महाराज के अनुयायी श्री मलूकचदजी महाराज तथा पूज्य श्री परसरामजी महाराज के अनुयायी श्री खेतसीजी व खीवसीजी महाराज आदि पचेवर ग्राम में एकत्रित हुए और पूज्य श्री अमरसिहजी महाराज के साथ सम्भोग सहयोग कर एक सूत्र मे बंध गये । अमर सूरि चरित्र पृ० ३९ । . .
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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