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________________ १२० आचार्य चरितावली अर्थः- वर्तमान मे सघ और उसके प्राचार की शिथिलता को देखकर बहुत से लोग अधीर हो जाते है । वास्तव मे अधीर होने की आवश्य कता नहीं है, आवश्यकता है सोये हुए पौरुप को जगाने की। महाराज विम्वसार और सम्प्रति अादि के समान आपको फिर अपना धर्म प्रेम सक्रिय करना होगा। अर्थलाभ के समान धर्मलाभ की भी मन मे भूख जगानी होगी। जव सव लोग धर्म कार्य के लिये योग देने हेतु तैयार हो जायेगे तो जन जन मे जैन शासन की ज्योति जलते देर नही लगेगी ।।२०७। प्रशस्ति || लानरगी ।। वर्द्धमान शासन के भूधर मुनिवर, पूज्य धर्म के पौत्र शिष्य है सुखकर । भूधर गरिण के शिष्य कुशल-जय भ्राता, गुमान, दुर्गादास भाग्य निर्माता । सघ शिरोमणि नचन्द्र सुखकारी ॥ लेकर० ॥२०॥ अर्थ:-भगवान् श्री महावीर के शासन काल मे भव्य जीवो को वीतराग धर्म के उपदेशामृत से परमानन्द प्रदान करने वाले पूज्य धर्मदास जी महाराज बड़े यशस्वी मुनि हुए । उनके पौत्र-शिष्य (शिष्य के शिष्य) भूधर जी महाराज वडे ही प्रतापी सत हुए है । पूज्य भूधरजी महाराज के शिप्य कुशलजी श्री जयमलजी के गुरुभाई थे। पूज्य कुशलजी के शिष्य श्री गुमानचन्दजी और दुर्गादासजी संघ के भाग्य निर्माता अर्थात् नवनिर्माण करने वाले हुए । उनके पश्चात् आचार्य रत्न चन्दजी सघ के शिरोमणि हुए ॥२०८॥ ।। लावणी ॥ रत्नचन्द के शिष्य हमीर लुहाये, पटधर तीजे पूज्य कजोडी भाये । विनयचन्द्र श्रु तघर प्रतिभा के स्वामी,
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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