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________________ आचार्य चरितावली १०६ रखा, पर ऐसा नही हो पाया। प्रधान मंत्री के अभाव मे श्रमणसघ का कार्य और भी अधिक उलझ गया। शुद्धिकरण, ध्वनियत्र और सवत्सरी पर्व की समस्या में सव परस्पर उलझने लगे। फलस्वरूप सघ की प्रगति अवरुद्ध हो गई। लावरणी॥ उपाचार्य प्राचार्य में पड़ गई खाई, सुलझाने को जब युक्ति नहीं पाई। निर्णय हित म नियो की समिति बनाई, उपाचार्य ने दिया संघ छिटकाई। श्रमसंघ के हित मे चोट करारी लेकर०॥१८६।। अर्थ -प्राचार्य और उपाचार्य के वीच की खाई को पाटने के जितने प्रयास किये गये वे सव विफल हुए। उपाध्याय मुनि श्री हस्तिमल्लजी महाराज द्वारा प्रस्तुत की गई सप्त सूत्री योजना से कार्य नहीं हुआ। निमित्त पाकर स्थिति अधिक उलझती गई । अन्त मे प्राचार्य श्री ने एक परामर्श समिति का निर्वाचन किया और विवादास्पद प्रश्नो के निर्णय हेतु उसको पूर्ण अधिकार प्रदान किये। बदली हुई स्थिति मे उपाचार्य श्री ने भी सघ से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया। इससे स घ को असमय मे वडी घातक चोट पहुंची। ॥ लावणी ।। म त्री का खाडा नहिं भरने पावे, उपाचार्य भी संघ त्याग कर जावे । देख दशा हितचिन्तक मन घबरावे, उपाध्याय इक उदियापुर को जाये। समाधान हित गरणी से बात विचारी लेकर०॥१६०।। अर्थ --प्रधान मंत्री का रिक्त स्थान भरने से पहले ही उपाचार्य श्री ने संघ त्याग दिया, ऐसी स्थिति में संघ का सचालन कैसे हो, इस
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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