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________________ आचार्य चरितावली १०५ फिर भी रह गये प्रश्न कई मुलझाने, परामर्श हित जोधाणे मुनि माने । दीर्घकाल तक रहे मुनि सुविचारी लेकर०॥१८२।। अर्थः- साल भर बाद ही सोजत मे फिर मत्रिमण्डल की बैठक हुई। समाचारी मे सशोधन एव पं० समर्थमलजी महाराज के समाधान का प्रयत्न किया गया । कई वातो मे खुल कर चर्चाए हुई। फिर भी पर्व तिथि निर्णय और सचित्त-अचित्त आदि के कई प्रश्न सुलझाने अवशेष रह गये । प्रमुख मुनि किसी जगह विराज कर शास्त्रीय मतभेदो पर विचार करे ऐत्ता निर्णय हुआ। तदनुसार प्रमुख-प्रमुख मुनिराजो का विचारविमर्श हेतु जोधपुर मे चातुर्मास हुआ और दीर्घकाल तक मन्त्रणा कर शास्त्रीय पाठ और प्रतिक्रमण की एकता आदि पर निर्णयात्मक विचार भी किया। || लावणी ॥ महामंत्री प्रानन्द सर्व सुखदायी, सहम त्री गज और प्यार कहलाई। उपाचार्य गरगईश मुनि थे नामी, आत्माराम आचार्य संघ के स्वामी । श्रमणसघ की चिन्ता सबको भारी ॥१८३।। अर्थः--श्री वद्ध मान स्थानकवासी जैन श्रमण-सघ के महामत्रीप्रधान मंत्री श्री आनन्द ऋपिजी महाराज थे और सहमत्री श्री गजमुनिहस्तिमलजी महाराज व श्री प्यारचन्दजी महाराज थे जो सहायक रूप से काम करते । संघ के प्रमुख प्राचार्य श्री पात्मारामजी महाराज एव उपा. चार्य श्री गणेशीलालजी महाराज निर्वाचित हुए। श्रमणसघ की समु. नति के लिये ये सव निरन्तर प्रयत्नशील रहते थे। ॥ लावणी ॥ दो हजार तेरह का वर्ष सुहाया, सम्मेलन मीनासर मे भरवाया।
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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