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________________ श्राचार्य चरितावली अर्थ - पहले पक्ष का विचार था कि वर्तमान के गच्छो को यथावत् कायम रख कर मतभेद कम किया जाय और मतैक्य करके फिर स्थायी एकता का कदम उठाया जाय । क्योकि समाचारी और मतभेद ही सप्रदाय भेद का मुख्य कारण है । जव नीति रीति मे एकता होगी तो प्रीति भी स्थायी एव ग्रटूट हो सकेगी । व्यवहार मे भी कहा जाता है कि: "समान शीलव्यसनेषु सख्यम् ।" समान आचार विचार वालो मे मैत्री टिकती है | अतः नीति रीति एक कर संगठन बनाया जाय । ॥ लावणी ॥ हुए नियम कई बनी योजना भारी, लोकतन्त्र की रीत चित्त मे धारी, एक तन्त्र पर लोकतन्त्र मंडरावे, लेन बुराई अपने शिर को च्हावे । चलते रंग में सबने ली स्वीकारी ॥ १५१ ॥ १०४ अथः सवने वढे चढे उत्साह मे संघ औौर एक समाचारी के कुछ नियम तैयार तन्त्रीय ढाचा मन मे रख कर संघ की आचार्य के नेतृत्व मे हो, इस भावना पर वनने के विचार से उस समय कोई नही किसी ने दवाव से, इस प्रकार सवने उस कर लिया । जिनके मन मे संशय था उन्होने लगा दिया । ऐक्य की योजना सपन्न की किये गये । राष्ट्र का लोकरचना की गई । सारा संघ एक लोकतन्त्र मंडरा गया | बुरा न वोला । किसी ने स्वेच्छा से तो समय इस सधैक्य को स्वीकार प्रवेश पत्र में अपना नोट भी ॥ लावणी ॥ सोजत में मुनि मंत्री मिल समाधान हित पंडित सुनि - सब श्राये, बुलवाये ।
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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