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________________ श्राचार्य चरितावली ९३ को छोड़कर ग्रहमदावाद मे मुनि दीक्षा ग्रहण की। आप वडे अवतारी पुरुष थे । ग्रापके निन्यानवे शिष्यो मे प्रमुख शिष्य धन्नाजी वडे भाग्यशाली हुए । उनकी शिष्य परपरा मरुभूमि मे फली फूली । इनके दूसरे शिष्य मुनि गूलचन्दजी ने गुजरात मे धर्म का उपदेश देकर भवी जनो का उद्धार किया । पूज्य मूलचन्दजी से निकलने वाले ग्रन्य कुलोपकुल रूप संघाड़ो का परिचय इस प्रकार है ॥ १६०॥ ॥ लावणी ॥ कच्छ, सायला, गोडल गादी राजे, वरवाला, लीवड़ी के गरण प्रति छाजे । नानी, मोटी पक्ष में कुल फैलाया, मल भेद नही इनमें कोई पाया । हुवे सत कई विद्या वल के धारी || लेकर० ।।१६१।। अर्थः- कच्छ, सायला और गोडल यादि गद्दी के क्षेत्रो के कारण गट्टी पर विराजने वाले प्राचार्यो की परम्परा भी गाव के नाम से कच्छ मघाडा, सायला सघाडा और गोडल संघाडा आदि नाम से कही जाने लगी । बरवाला और लीवडी संघाडा भी शोभायमान है । लीवड़ी के पूज्य श्री अजरामरजी स्वामी विशेष प्रभावशाली रहे । लीवडी आदि कुछ सवाड़ो मेनानी पक्ष माटी पक्ष के उपकुल भी है पर इनमे कोई मौलिक भेद नही पाया जाता । व्यवस्था भेद एवं गुरु भक्ति के रूप मे ही इन सघाडो का प्रादुर्भाव हुआ प्रतीत होता है । इनमे कई विद्यावल सम्पन्न मुनिराज हुए शतावधानी श्री रतनचद जी, श्री मणिलालजी, श्री मोहनलालजी यादि इसी परंपरा के प्रख्यात संत हुए हैं । जिनकी महिमा ग्राज भी विद्यमान है ॥१६१ ॥ 1 ||लावरणी॥ रामचन्द्र सुनि मालव भू को तारे, मरुधर में भी कुछ मुनिगरण विस्तारे |
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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